कहते है, लोग बिन बताये दिल में पनाह ले लेते है,
कुछ खास होते है जो कोने में छुप के बैठ जाते है...
कुछ बातें जो कभी राह चलते तो कभी तन्हा बैठे दिल में घुमड़ती रहती है.. जब भी मन करता है अपनी कलम से कोरे कागज़ को रंगना शुरू कर देता हूँ... ऐसे में ही कभी अपनों की तो कभी अनजानी प्रशंसा ने इतना विवश किया कि ये सब blog के माध्यम से आपके सामने चित्रित हो खड़ी है...
अब्बू कहा करते थे,
आँखों की बरसात बचा के रखना,
लोग आग लगाना नहीं भूले हैं,
पर उस बरसात से ज्वालामुखी को,
चाहूँ तो भी बुझाऊँ कैसे...
दिल में चुभ रही थी एक कील,
दर्द सहना हो रहा था मुश्किल,
हाथ विद्रोही बन बैठे,
आक्रोश और द्वेष उसका साथ दे बैठे,
ना रोक सका उस प्यासे खंजर को,
जो मास्टर के बदन को छ्लनी कर बैठे...
अजनबीयों के शहर में,
अपना ही वजूद अजनबी लगने लगा,
जोकर का मुखौटा पहने आईने में,
खुद को पहचानने की कोशिश करने लगा,
आया था चेहरा छुपाने, पर
चेहरे ने ही दिया अनजाना करार...
जैसा किया वैसा पाया,
अब ना है किसी सुख की चाह,
ये एक सर्कस नहीं,
पनाहगाह है, पनाहगाह...!!!