Wednesday, December 30, 2009

"कुछ अनकही..."








जब भी ख्यालों की उड़ान का पंछी होता हूँ,
रह-रह कर तुम्हारे आसमां में खो जाता हूँ,
यहाँ बादल भी तुम्हारी शक्ल बना बैठे रहते है,
और हम है कि तुम्हे हर जगह ढूंढते रहते है…
तेरी परछाई सी दिखी किसी बादल में,
पास गए तो उलझ गए भूलभुलैया में,
वहाँ कुछ ना था जो हमें थोड़ा सुकून दे,
मगर फिर भी जकड़े हुए थी तुम्हारी यादें…
एक पल भी महसूस ना हुआ कि हम अकेले है,
लगा ऐसा कि हर वक़्त आप हमारा हाथ पकडे है,
जब भी आया बवंडर हम सहम जाते थे,
पर कुछ पल में ही तुम्हे साथ खड़ा पाते थे…
कभी ये चाहत ना की, कि आप हमारे हो,
बस गुज़ारिश थी कि आपका साथ हमारा हो,
मेरी इसी गुस्ताखी को आप हमारी मोहब्बत समझ बैठे,
मगर हम इसे मोहब्बत तो नहीं पर दोस्ती से बढ़ कर कह बैठे..
टूट जायेंगे ये रिश्ते इतने जल्दी ये हमे मालुम न था,
जब दो चार गलतियां कर के देखी तो हमे पता चला..
इन फूल से नाज़ुक रिश्तों को कभी हाथ भी ना लगायेंगे,
बस इन्हें दूर से देख कर ही हम खुश हो लेंगे...