Monday, July 19, 2010

बहका मन...




रात की चादर तले, बादलों में खेलते-छिपते, कभी कभी चाँद के झरोखे से, वो मुझे देखा करती है...
मैं थोड़ा बैचेन सा, कभी परेशान सा, उसे इस धरा पर खोजता हूँ.. और वो मुझे देख के हंसा करती है...!!
मैं उस मदहोश हंसी के लिए, जाने क्या-क्या जतन करता हूँ.. और वो इसे  मजाक समझा करती है...
मैं कभी उसे किताब के पन्नो तो कभी मिट्टी में कुरेदता हूँ.. और वो मुझे पागल समझा करती है..!!
मैं उसे कागज़ पर रंगों से सजाना चाहता हूँ.. और वो जुगनू सी टिमटिमा कर ओझल हो जाती है...
मैं आईने में भी दिखती उसकी तस्वीर को छूना चाहता हूँ.. और वो बीच खड़ी दीवार का एहसास कराती है...!!
मैं उसे अपने ख्यालों के पिंजरे में बंद करना चाहता हूँ.. और वो आज़ाद पंछी हर बार उड़ जाया करती है...
मैं धागा बन, उसे पतंग बना आसमां में उड़ना चाहता हूँ,. और वो किसी के मांझे से कट जाया करती है...!!
मैं सपनों में उसे जिंदा कर कभी यहाँ तो कभी वहाँ  खोजता हूँ.. और वो मुझसे लुकाछिपी खेला करती है...
मैं उसके ताबूत पर फूल ले तन्हा सा बैठा सोचता हूँ.. और वो आँखे बंद कर चुप-चाप सोयी रहती है...!!!

Wednesday, July 14, 2010

रिमझिम रूह..







तेरी एक झलक के लिए बादल तरसता है,
जब तू गली से निकले तब ही वो बरसता है..
भीगने से जब तू कतरा कर कहीं  छिप जाती है,
वो आड़ी तिरछी हवाओ के संग तुझे ढूंढता है...

तेरे गीले लिबास में सोने सा रूप निखरता है,
सतरंगी इन्द्रधनुष को भी ये नूर अखरता है...
उड़ा ले जाती है जब तेज हवाएं तेरे पल्लू को 
पेड़ भी आशिक हो उसे पकड़ने की कोशिश करता है...

हवा के थपेड़ों में तेरी बिंदिया माथे पे सजी है ऐसे,
बादलों की लडाई में चंदा चमका हो आसमां में जैसे...
बारिश की बूंदे  तेरे  गालों को सहलाती है,
बे हया सी हो तेरे चेहरे पर फिसलती जाती है...

काजल से लबालब हो तेरी पलकें जब उठती है,
डूब जाऊ इन समुन्दर में जब आँखे तेरी झुकती है...
संग बहती हवाओं के जब तेरी जुल्फें भी लहराती है,
हाथ उठता है सही करने को पर उंगलिया फंस जाती है...

कलाई में पहनी चूड़ियां जब बारिश में खनखनाती है,
बादल गरजने लगते है और बिजलियाँ चमकने लगती है...
घटाएँ तेरे अक्स को आसमां में नहलाती है,
तेरे बदन से गुज़री हर बूँद मेरी प्यास बुझाती है...!!!