Saturday, September 22, 2012

मेहंदी..




हथेली पर मेहंदी का कोण चलाते देख 
मुझे याद आती है 
कोने वाली मिठाई की दूकान पर 
उबलते घी में छनछनाती जलेबियाँ..

उसी तरह जलेबियाँ बिखेरती तुम 
गोरे-गोरे, नरम हाथों पर.. 
बीच बीच में चख लेती मेहंदी को 
जैसे हलवाई चखता है जायका जलेबी का..

मैंने भी चख के देखा
कडवी लगी, 
चाशनी में डूबी हुई जलेबी खानी पड़ी..!!

मेहंदी के खर जाने पर 
हाथों की लकीरों को जैसे 
मिल गया हो साथ फूल पत्तियों का..
और हक जताती चढ़ जाती कोहनी तक..

अंगुली की टपोरियां रंगी हुई,
कहीं कलश तो किसी कोने में
अपने साजन का नाम लिखे..
सौंदर्य को परिपूर्ण करती मेहंदी..

अब समझ में आया.. 
क्यूँ मीठी लगती है मेहंदी..
उसके हाथों को देख 
मुँह में चाशनी सा स्वाद लगने लगा...!!

Friday, September 7, 2012

ख्वाब-1

ख्वाब में आज तुम्हे
झील के किनारे देखा..
सुबह की ओंस से भीगे बाल,
तुम्हे परेशान कर रहे थे..
और तुम खीज कर 
अपनी अँगुलियों से उन्हें
करीने से कान के पीछे टांग देती..
फिर एक और हवा का झोंका आया
और तुम इधर-उधर जूडा खोजने लगी..!!

ब्रश करते हुए सोच रहा था,
तुम रोज ख्वाबों में क्यूँ नहीं आती...!!!