कुछ बातें जो कभी राह चलते तो कभी तन्हा बैठे दिल में घुमड़ती रहती है.. जब भी मन करता है अपनी कलम से कोरे कागज़ को रंगना शुरू कर देता हूँ... ऐसे में ही कभी अपनों की तो कभी अनजानी प्रशंसा ने इतना विवश किया कि ये सब blog के माध्यम से आपके सामने चित्रित हो खड़ी है...
Wednesday, December 30, 2009
"कुछ अनकही..."
Wednesday, November 4, 2009
BirthDay wish for VIPUL
कहते है, लोग बिन बताये दिल में पनाह ले लेते है,
कुछ खास होते है जो कोने में छुप के बैठ जाते है...
पनाहगाह
अब्बू कहा करते थे,
आँखों की बरसात बचा के रखना,
लोग आग लगाना नहीं भूले हैं,
पर उस बरसात से ज्वालामुखी को,
चाहूँ तो भी बुझाऊँ कैसे...
दिल में चुभ रही थी एक कील,
दर्द सहना हो रहा था मुश्किल,
हाथ विद्रोही बन बैठे,
आक्रोश और द्वेष उसका साथ दे बैठे,
ना रोक सका उस प्यासे खंजर को,
जो मास्टर के बदन को छ्लनी कर बैठे...
अजनबीयों के शहर में,
अपना ही वजूद अजनबी लगने लगा,
जोकर का मुखौटा पहने आईने में,
खुद को पहचानने की कोशिश करने लगा,
आया था चेहरा छुपाने, पर
चेहरे ने ही दिया अनजाना करार...
जैसा किया वैसा पाया,
अब ना है किसी सुख की चाह,
ये एक सर्कस नहीं,
पनाहगाह है, पनाहगाह...!!!
Wednesday, September 9, 2009
बूँद...
कुछ चीजें होती है, जिनका अनजाने में ही इंतज़ार किया करते है,
कोई खामोशी से तो कोई ख़ुशी से, अपना इज़हार किया करते है...
कुदरत की इस कृति की बड़ी अजीबोगरीब दास्ताँ है,
इसे समझ पाना कभी मुश्किल, तो कभी बहुत आसान है....
जैसे "पानी की बूँद", कहने को तो सिर्फ एक मामूली बूँद होती है,
ये बहरूपिये की तरह है, जो किसी को पहचान में नहीं आती है...
धरती की प्यास बुझाने के लिए, बरस पड़ती है आसमान से,
लहलहाते खेतों के लिए, बन के आती है सोमरस के रूप में...
समूचे गगन में हो संग हवाओं के, ये ठुमकती रहती है,
सूरज की किरणों के साथ खेल होली, ये इन्द्रधनुष बना देती है...
बारिश में पेडों के पत्तों पर, ये मोती बनकर बिखर जाती है,
फूल के अंगों पर सजकर, ये दुल्हन उसे बना देती है...
शराब की बोतल में लुढ़ककर, ना जाने कितने मयखाने सजाये है,
गम में डूबे हुए को अपना सहारा देकर, अनगिनत देवदास बनाये है...
कभी दुःख में शामिल होकर, आँख से आंसू बनकर निकल पड़ती है ,
तब आसान नहीं होता रोक पाना इसे, जब आँखे ज्वालामुखी बन जाती है...
ये उभरती है हीरे की तरह चमकती हुई, जब माथे पर पसीना बन के ,
लगता है जैसे अपनी मेहनत से जीत कर ज़ंग, हम बन गए हो बादशाह जगत के...
इतना कुछ होने पर भी हमेशा खोई रहती है किसी गुमनामी के अँधेरे में,
जैसे ये मिटा देती है अपना वजूद, डूब कर समुन्दर की गहराइयों में...