Wednesday, December 30, 2009

"कुछ अनकही..."








जब भी ख्यालों की उड़ान का पंछी होता हूँ,
रह-रह कर तुम्हारे आसमां में खो जाता हूँ,
यहाँ बादल भी तुम्हारी शक्ल बना बैठे रहते है,
और हम है कि तुम्हे हर जगह ढूंढते रहते है…
तेरी परछाई सी दिखी किसी बादल में,
पास गए तो उलझ गए भूलभुलैया में,
वहाँ कुछ ना था जो हमें थोड़ा सुकून दे,
मगर फिर भी जकड़े हुए थी तुम्हारी यादें…
एक पल भी महसूस ना हुआ कि हम अकेले है,
लगा ऐसा कि हर वक़्त आप हमारा हाथ पकडे है,
जब भी आया बवंडर हम सहम जाते थे,
पर कुछ पल में ही तुम्हे साथ खड़ा पाते थे…
कभी ये चाहत ना की, कि आप हमारे हो,
बस गुज़ारिश थी कि आपका साथ हमारा हो,
मेरी इसी गुस्ताखी को आप हमारी मोहब्बत समझ बैठे,
मगर हम इसे मोहब्बत तो नहीं पर दोस्ती से बढ़ कर कह बैठे..
टूट जायेंगे ये रिश्ते इतने जल्दी ये हमे मालुम न था,
जब दो चार गलतियां कर के देखी तो हमे पता चला..
इन फूल से नाज़ुक रिश्तों को कभी हाथ भी ना लगायेंगे,
बस इन्हें दूर से देख कर ही हम खुश हो लेंगे...

Wednesday, November 4, 2009

BirthDay wish for VIPUL




कहते है, लोग बिन बताये दिल में पनाह ले लेते है,
कुछ खास होते है जो कोने में छुप के बैठ जाते है...
दिल के टूट जाने पर, अपने सहारे का मलहम वो लगाते है,
कभी हमारी खामोशी में, खुद जुबाँ बन मन बहलाते है...
लोग हर बार अनजाने में एक नया रिश्ता बना कर आते है,
ऐसा ही एक अज़ीज़ दोस्त है मेरा, हम जिसे "विपुल " पुकारते है...
उसकी अठारहवीं सालगिरह के जश्न में शामिल होने आया हूँ,
बेहिसाब दुआओं के साथ , जन्मदिन की मुबारकबाद लाया हूँ...
मेरी शुभकामनाएं पंक्तिबद्ध हो तेरा इंतज़ार कर रही है,
कबूल कर उन्हें, कुछ नगमें तुझ पर बरसाने आया हूँ...
इस अवसर पर तेरी हर मनोकामना तेरा मस्तक चूमें,
तेरी लहरों रूपी मंजिलो को जल्द ही एक साहिल मिल जाये...
तेरे शशि समान मुखड़े पर हमेशा स्वर्ण मुस्कान छाई रहे,
तेरी परछाई बन साथ चले हम, और तू आसमां को छू जाये,
अगर मैं गलत राह चलूँ कभी तो, तू हाथ थामने आ जाना,
मुड़ जाऊंगा दूसरी ओर उसी वक़्त, बस तेरी सलाह मेरे साथ आये...
बस ऐसी ही कुछ बाते मैं दिल में संजो के रखता हूँ,
फ़ना हो सभी दूरियां, ये गीत गुनगुनाता रहता हूँ...!!!

पनाहगाह

"Main Dram GC" @ IIT-B



" परिंदे आते है परदेस से, ये सोचकर की कुछ दिन रहेंगे और निकल पड़ेंगे कहीं... इसी चाह में वो किसी पेड़ से पनाह लेते है... और उसी " पनाहगाह " को अपना बसेरा बना लेते है..."


अब्बू कहा करते थे,

आँखों की बरसात बचा के रखना,

लोग आग लगाना नहीं भूले हैं,

पर उस बरसात से ज्वालामुखी को,

चाहूँ तो भी बुझाऊँ कैसे...


दिल में चुभ रही थी एक कील,

दर्द सहना हो रहा था मुश्किल,

हाथ विद्रोही बन बैठे,

आक्रोश और द्वेष उसका साथ दे बैठे,

ना रोक सका उस प्यासे खंजर को,

जो मास्टर के बदन को छ्लनी कर बैठे...


अजनबीयों के शहर में,

अपना ही वजूद अजनबी लगने लगा,

जोकर का मुखौटा पहने आईने में,

खुद को पहचानने की कोशिश करने लगा,

आया था चेहरा छुपाने, पर

चेहरे ने ही दिया अनजाना करार...

जैसा किया वैसा पाया,

अब ना है किसी सुख की चाह,

ये एक सर्कस नहीं,

पनाहगाह है, पनाहगाह...!!!

Wednesday, September 9, 2009

बूँद...




कुछ चीजें होती है, जिनका अनजाने में ही इंतज़ार किया करते है,
कोई खामोशी से तो कोई ख़ुशी से, अपना इज़हार किया करते है...
कुदरत की इस कृति की बड़ी अजीबोगरीब दास्ताँ है,
इसे समझ पाना कभी मुश्किल, तो कभी बहुत आसान है....

जैसे "पानी की बूँद", कहने को तो सिर्फ एक मामूली बूँद होती है,
ये बहरूपिये की तरह है, जो किसी को पहचान में नहीं आती है...
धरती की प्यास बुझाने के लिए, बरस पड़ती है आसमान से,
लहलहाते खेतों के लिए, बन के आती है सोमरस के रूप में...

समूचे गगन में हो संग हवाओं के, ये ठुमकती रहती है,
सूरज की किरणों के साथ खेल होली, ये इन्द्रधनुष बना देती है...
बारिश में पेडों के पत्तों पर, ये मोती बनकर बिखर जाती है,
फूल के अंगों पर सजकर, ये दुल्हन उसे बना देती है...

शराब की बोतल में लुढ़ककर, ना जाने कितने मयखाने सजाये है,
गम में डूबे हुए को अपना सहारा देकर, अनगिनत देवदास बनाये है...
कभी दुःख में शामिल होकर, आँख से आंसू बनकर निकल पड़ती है ,
तब आसान नहीं होता रोक पाना इसे, जब आँखे ज्वालामुखी बन जाती है...

ये उभरती है हीरे की तरह चमकती हुई, जब माथे पर पसीना बन के ,
लगता है जैसे अपनी मेहनत से जीत कर ज़ंग, हम बन गए हो बादशाह जगत के...
इतना कुछ होने पर भी हमेशा खोई रहती है किसी गुमनामी के अँधेरे में,
जैसे ये मिटा देती है अपना वजूद, डूब कर समुन्दर की गहराइयों में...