Sunday, August 29, 2010

वो हसीन "स्वप्ना "


हडबडा कर कुछ इस तरह से नींद उडी कि जैसे किसी तूफ़ान का आगाज़ हुआ हो.. अभी आँखे खुली ही नहीं थी कि  स्मृतिपटल पर कुछ धुंधले दृश्य उभर रहे थे, जो शायद मुझे कुछ कहना चाहते थे..  जब आँख बंद कर फिर से सोचा तो मुझे वो ख्वाब दिख रहा था जो अब इतिहास बन चुका था.. खैर, आपको उन लम्हों से रूबरू कराता हूँ जब मैं आँखे मूँद कर कुछ सोचने लगा था.. 

"रात गुज़र गयी उन् सूरमायी आँखों में,
ख्वाब देखे हसीन उन बचीखुची यादों में..
होश में थे या थे बेहोश, बस बेखबर से थे,
जाने कैसे जग रहे थे सुन्न पड़ी धडकनों में..
जिस्म ना मिले तो क्या, वो रूहानी मिलन थे,
बिना छुए भी उनका स्पर्श है मेरी चाहतों में..
काज़ल से तर पलकें तड़प रही थी अंधेरों में,
जुगनू चिराग जला रहे थे हमारी तन्हा राहों में..
फुलवारी की महक से ज्यादा मदहोश थी  वो, 
बनवारी की बंसी सा नशा था उन खुशबुओं में...!!"

बस इतने में मुझे उस alarm की आवाज़ ने फिर से उठने को मजबूर कर दिया.. और वो चौथे पहर के  स्वप्ना  को फिर से याद करने की कोशिश में लग गया...!!!


Sunday, August 15, 2010

स्वतंत्रता दिवस

धरा से लेकर ऊंचे फलक तक, हम तिरंगा फ़हरा देंगे..
कश्मीर से कन्याकुमारी तक, आज़ादी का अलख जगा देंगे...
पूरब में उगे सूरज को, अब पश्चिम में ढलने ना देंगे..
हिन्दुस्तानी स्वर्णिम पंछी, अब फिरंगी वतन में ना उड़ने देंगे...
बहुत नोच लिया हमारी अस्मत को, अब पलटकर वार करेंगे..
आतंक, फरेब, हिंसा को, हम देश में घुसने ना देंगे...
शहीद हो गए आज़ाद-भगतसिंह, देश की साँसों की खातिर..
पंडित-मुल्ला-पादरी को गले मिला, उन साँसों को हम सुकून देंगे...
लाख जवानियाँ किश्त में देकर, ये आज़ादी हमने पायी है..
ना हो कोई मांग सूनी, हर जवाँ दिल को हम ये जूनून देंगे...
क्या हुआ अगर बढे फासले, अब ना किसी की बात सुनेंगे..
दुश्मन को भी हाथ बढ़ा, हम मोहब्बत का पैगाम देंगे...

              जय हिंद...!!

Friday, August 13, 2010

Happy Birthday SUNIDHI JI...



जन्मदिन से एक दिन पहले ही तोहफा कबूल कीजियेगा...

जन्मदिन की  बहुत-बहुत शुभकामनाएं...

"अंगडाई लेने से लेकर, शाम को लौटते बुझते, 
सूरज की रंगीन रौशनी, आपकी ज़िन्दगी में इस कदर आये,
कि चुंधियाती आँखों पर, ढके हुए परदे रुपी, 
पलकें जब ऊपर उठे, तो हसीन दुनिया की वो तस्वीर आपको नीगेबान हो..
कि देखकर शशि समान मुखड़े पर, अक्षय तृतीया के चाँद के माफिक, मुस्कराहट का आगाज़ हो..
जब धरा पर अपने पैर रखो, तो कुदरत के बनाये तमाम लाल फूल, 
सेज बनकर आपके क़दमों की खिदमत में न्योछावर हो..
झपकियाँ लेती, खुली-उलझी जुल्फों को सुलझाने के लिए, 
भीनी-भीनी सी महकती हवाएं आतुर हो..
जब कुछ कहने लगो तो सातों सुर, कल-कल से बहते झरने में गोते लगाते हुए,
कूकती कोयल से राग चुरा और माँ शारदा की वीणा से तान छेड़ आपके समक्ष खड़े हो...!!"