हडबडा कर कुछ इस तरह से नींद उडी कि जैसे किसी तूफ़ान का आगाज़ हुआ हो.. अभी आँखे खुली ही नहीं थी कि स्मृतिपटल पर कुछ धुंधले दृश्य उभर रहे थे, जो शायद मुझे कुछ कहना चाहते थे.. जब आँख बंद कर फिर से सोचा तो मुझे वो ख्वाब दिख रहा था जो अब इतिहास बन चुका था.. खैर, आपको उन लम्हों से रूबरू कराता हूँ जब मैं आँखे मूँद कर कुछ सोचने लगा था..
"रात गुज़र गयी उन् सूरमायी आँखों में,
ख्वाब देखे हसीन उन बचीखुची यादों में..
होश में थे या थे बेहोश, बस बेखबर से थे,
जाने कैसे जग रहे थे सुन्न पड़ी धडकनों में..
जिस्म ना मिले तो क्या, वो रूहानी मिलन थे,
बिना छुए भी उनका स्पर्श है मेरी चाहतों में..
काज़ल से तर पलकें तड़प रही थी अंधेरों में,
जुगनू चिराग जला रहे थे हमारी तन्हा राहों में..
फुलवारी की महक से ज्यादा मदहोश थी वो,
बनवारी की बंसी सा नशा था उन खुशबुओं में...!!"
बस इतने में मुझे उस alarm की आवाज़ ने फिर से उठने को मजबूर कर दिया.. और वो चौथे पहर के स्वप्ना को फिर से याद करने की कोशिश में लग गया...!!!