Wednesday, July 14, 2010

रिमझिम रूह..







तेरी एक झलक के लिए बादल तरसता है,
जब तू गली से निकले तब ही वो बरसता है..
भीगने से जब तू कतरा कर कहीं  छिप जाती है,
वो आड़ी तिरछी हवाओ के संग तुझे ढूंढता है...

तेरे गीले लिबास में सोने सा रूप निखरता है,
सतरंगी इन्द्रधनुष को भी ये नूर अखरता है...
उड़ा ले जाती है जब तेज हवाएं तेरे पल्लू को 
पेड़ भी आशिक हो उसे पकड़ने की कोशिश करता है...

हवा के थपेड़ों में तेरी बिंदिया माथे पे सजी है ऐसे,
बादलों की लडाई में चंदा चमका हो आसमां में जैसे...
बारिश की बूंदे  तेरे  गालों को सहलाती है,
बे हया सी हो तेरे चेहरे पर फिसलती जाती है...

काजल से लबालब हो तेरी पलकें जब उठती है,
डूब जाऊ इन समुन्दर में जब आँखे तेरी झुकती है...
संग बहती हवाओं के जब तेरी जुल्फें भी लहराती है,
हाथ उठता है सही करने को पर उंगलिया फंस जाती है...

कलाई में पहनी चूड़ियां जब बारिश में खनखनाती है,
बादल गरजने लगते है और बिजलियाँ चमकने लगती है...
घटाएँ तेरे अक्स को आसमां में नहलाती है,
तेरे बदन से गुज़री हर बूँद मेरी प्यास बुझाती है...!!!

6 comments:

  1. अच्छी लगी एक सुंदर रचना , बधाई

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  2. bahut badhiya...
    kavita rachna ke kaafi gur seekh liye aapne...

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  3. bahut dhanyawaad itne pyaar ke liye..

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  4. Wow, that was beautiful, Kanu. I loved the images you created in my mind. Very lovely.

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