Friday, February 3, 2012

पणिहारी..




मटका
सर पे लादे वो,
निकली पानी भरने को..
कभी
नाक की बाली,
कभी बालों की लट,
हंसी ठिठोली करती 
उकसाती उसे चलने को..!! 
शैतान घड़ा
करे परेशान बड़ा,
छलक-छलक के,
ढूलक-ढूलक के,
उसे नहलाने को आतुर 
पानी के छींटो से..!!
रंग-बिरंगी इडूणी,
पानी से
झर-झर करती,
जैसे
बारिश की बूंदे,
टप-टप, टप-टप,
टप-टप करती..!!
पानी के रेले
चेहरे से झरते,
ओढ़नी को उसकी,
जैसे  
बादल समझ बैठे..
हैरान सी वो 
बेहाल सी वो
मगर फिर भी 
वो मटकाती
वो मुस्काती
बस नैनों से 
कुछ कह जाती..!!

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