Friday, March 16, 2012

समझ बैठा..





तेरी पलकें देख कर, मैंने मुड़ के देखा,
मैं काज़ल को घटाएँ समझ बैठा..
होश में यूँ तो नहीं थी कोई कमी,
तेरी आँखों को गहरी झील समझ बैठा..
डूब के उसमे, मैं तुझसे मोहब्बत कर बैठा..!!

दमकते सितारे को, मैंने मुड़ के देखा,
मैं बिंदिया को चाँद समझ बैठा..
होश में यूँ तो नहीं थी कोई कमी,
पागल चकोर से तुझे संदेशा भेज बैठा..
इसी दरमियान, मैं तुझसे मोहब्बत कर बैठा..!!

झूलती जुल्फों को, मैंने मुड़ के देखा,
मैं उन लटों को बहती हवा समझ बैठा..
होश में यूँ तो नहीं थी कोई कमी,
उन हवा से खुद को झुलसा बैठा..
तड़प कर, मैं तुझसे मोहब्बत कर बैठा..!!

लटकती बाली को, मैंने मुड़ के देखा,
उन गहनों को मैं जुगनू समझ बैठा..
होश में यूँ तो नहीं थी कोई कमी, 
उन जुगनुओ के पीछे भाग बैठा..
अँधेरे में खो कर, मैं तुझसे मोहब्बत कर बैठा...!!!

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