Saturday, October 2, 2010

पिता

कहते है कि भगवान ने इंसान तो बना दिया पर उसे ज़िन्दगी जीना कैसे सिखाये, वो खुद तो सिखा नहीं सकते थे.. तो उन्होंने हमारे साथ रहने के लिए.. सागर से गहरायी, आसमां से विशालता, पहाड़ से कठोरता, फूल से कोमलता और झरने से शीतलता ले दो रचनाएं गढ़ी..!!
दुनिया ने एक को नाम दिया "माँ" और दुसरे को कहा "पिता"...!!

कह के तो नहीं कह सकता.. पर लिख के कहने की हिम्मत जरूर है पापा.. I LOVE YOU VERY MUCH...  
A very-very Happy Birthday PAPA...

A Tribute to all Fathers..       "पिता"




वेद-ग्रन्थ के खुले अध्यायों का, भवसागर है पिता,
मुझ सीप के मोती का, समुन्दर सा जहां है पिता..
स्मरण मात्र से उनके, देवालयों में घंटियाँ बजती है,
ईश्वर-अल्लाह-यीशु है, फिर भी जग जिसे पूजे, वो है पिता...

मुझ बीज को अपनी छाँव में, जिस वृक्ष ने जन्मा वो है पिता,
धूप-तूफ़ान में साया बन, मुझ कलि को खिलाये मेरे पिता..
दफ्तर से आते ही मेरी हंसी से, सारी थकान उड़ जाती है,
अपने बच्चे के रोने पर, जो झूलता पलना बने, वो है पिता...

संस्कार की पाठशाला में, छड़ी ले खड़े रहते है पिता,
कभी गोद तो कभी काँधे पर, उठा मेले घुमाते है पिता..
गलती करने पर उन हाथो को, वज्र बना देखा है,
पैर छूने पर वही हाथ सर पर रख दे, वो है पिता...

माँ के माथे की रौनक, मेरे नाम के सरताज है पिता,
बाज़ार में हर चीज, अपनी लगे जब संग हो पिता..
अपने गुलशन में बहारें सजा, मुझ फूल को महकाया है,
ज़िन्दगी के कांटो पर सख्त, पर मेरे लिए नाज़ुक, वो है पिता...

आप एहसास है, संवेदना है, गालों पर पप्पी है पिता,
स्कूल जाने पर, खिड़की से मुझे अपलक देखते है पिता..
मेरी शरारतों में, अपना बचपना देख मुस्कुराते है,
माँ फिर भी रो दे, पर बेटे के सामने ना रो सके, वो है पिता... 

कैलाश-हरिद्वार, काशी-मथुरा, अमरनाथ है पिता,
मेरी स्याही-दावत और मंत्रो का जाप है पिता..
प्रभात बेला में, चेहरा दिखना मेरा शगुन है पिता,
दिल में बसा है जिसके छुपा  अनंत प्यार, वो है पिता...!!

25 comments:

  1. for ur convinience..

    वेद (ग्रन्थ)--> epic
    अध्याय--> chapter
    स्मरण--> memorize
    देवालय--> temple
    यीशु--> jesus
    वृक्ष--> tree
    पलना--> cradle
    वज्र--> thunderbolt
    सरताज--> crown
    प्रभात-बेला--> early morning

    ReplyDelete
  2. Great poem yaar.. Papa ko bhi rulayega ab... :'(

    ReplyDelete
  3. Aapke papa ko meri taraf se janamdin ki bahut bahut badahi.....i feeling very fine today after reading ur this blog...b'coz today is also my father's b'day///thnxx kanu for bringing all my momemts with my family back to live.

    ReplyDelete
  4. infi like..!!
    thanx kanu for writing such poems.
    :)
    happy birthday to both the uncles. \m/

    ReplyDelete
  5. bahut hi umda rachna ki hai...mind blowing
    its so senti..specially for a girl(as they are attached to their father most)... :'(
    maan gaye kanu ustaad :) :)

    ReplyDelete
  6. Awesome kanu
    simply awesome !!!

    ReplyDelete
  7. It was lovely, Kanu. Do wish your father, humari taraf se bhi.
    I'm forwarding this to my father now.

    ReplyDelete
  8. Awesome, forwarding to my father !!

    ReplyDelete
  9. awesomemaxx lines kanu...keep it up
    wish ur dad happy b'day from ma side too :):)

    ReplyDelete
  10. arey sahi hai yaar!!!

    ReplyDelete
  11. you just write amazing....
    wish uncle a very happy bday :)

    ReplyDelete
  12. Thank you very much to all of you.. :):)

    ReplyDelete
  13. belated happy birthday :) to your father
    and good work
    keep it up!!

    ReplyDelete
  14. yaar teri poem mujhe puri kyu nhi chamakti??
    well was able to understand it except 1st para.
    dhamaakedaar poem......:)

    ReplyDelete
  15. good to see a poem on father in a polar world.. bahut hi aam baaton ko gehrai ke saath likha hai...

    ReplyDelete
  16. very nice..and touching... god bless you...your father will be very proud of you...you write so well...prateek has forwarded this to me....i m his mother...i like your earlier one also....
    thanks ...and "saraswati ji sada aapki kalam main nivas karen".....

    namrata chaturvedi

    ReplyDelete
  17. thnk u very much Namrata Aunty.. nd all frends..
    main kah nahi sakta ki main kaisa mehsoos kar raha hoon.. :):)

    ReplyDelete
  18. bahot khoob... khush reh beta... faloo fulooo putra...

    ReplyDelete
  19. Really great! awesome hai yaar :)

    ReplyDelete
  20. इक वह दौर था जब में बेटा था
    और पिता कि महत्ता को देखा व् समझा था
    पिता के वट वृक्ष में अपने को सुरक्षित जान नन्हे से बचपन से किशोर
    व् किशोरावस्था से यौवन तक का सफ़र कटते देखा था
    आज में पिता हूँ
    आज मेरा सोच बदलाव ले आया है
    बचपन से पचपन तक का सफ़र इक फिल्म कि तरह आखों के सामने से गुजर रहा है
    सोचता हूँ इस दौर में कि ---
    दीपावली पर कितने भी दीप जला लूं
    असली जीवन का प्रकाश है-- बेटा
    जब भी डगमगाऊंगा संभालेगा वही
    क्यूंकि अब पता कि लाठी है-- बेटा
    चाँद तारे कितना भी रोशन करे जहाँ को
    पिता के चेहरे कि असली चमक तो है --बेटा
    मैंने इस संसार में पाए जो संस्कार अपने बड़ों से
    उन्हें सहेजेगा ,संवारेगा और बाटेगा --बेटा
    अंखियों का नूर ,अधरों की जुबान ,ह्रदय का स्पंदन है --बेटा
    बस यही कहूँगा
    हर पिता के लिए
    सबसे बड़ा valentine है --बेटा -
    aur agar beta aapke jaisa ho to ek pita
    ka jivan hi safal ho gaya
    girish durgani

    ReplyDelete