Wednesday, December 30, 2009

"कुछ अनकही..."








जब भी ख्यालों की उड़ान का पंछी होता हूँ,
रह-रह कर तुम्हारे आसमां में खो जाता हूँ,
यहाँ बादल भी तुम्हारी शक्ल बना बैठे रहते है,
और हम है कि तुम्हे हर जगह ढूंढते रहते है…
तेरी परछाई सी दिखी किसी बादल में,
पास गए तो उलझ गए भूलभुलैया में,
वहाँ कुछ ना था जो हमें थोड़ा सुकून दे,
मगर फिर भी जकड़े हुए थी तुम्हारी यादें…
एक पल भी महसूस ना हुआ कि हम अकेले है,
लगा ऐसा कि हर वक़्त आप हमारा हाथ पकडे है,
जब भी आया बवंडर हम सहम जाते थे,
पर कुछ पल में ही तुम्हे साथ खड़ा पाते थे…
कभी ये चाहत ना की, कि आप हमारे हो,
बस गुज़ारिश थी कि आपका साथ हमारा हो,
मेरी इसी गुस्ताखी को आप हमारी मोहब्बत समझ बैठे,
मगर हम इसे मोहब्बत तो नहीं पर दोस्ती से बढ़ कर कह बैठे..
टूट जायेंगे ये रिश्ते इतने जल्दी ये हमे मालुम न था,
जब दो चार गलतियां कर के देखी तो हमे पता चला..
इन फूल से नाज़ुक रिश्तों को कभी हाथ भी ना लगायेंगे,
बस इन्हें दूर से देख कर ही हम खुश हो लेंगे...

8 comments:

  1. शब्दों और भावों की नयनाभिराम प्रविष्टि अत्यंत सराहनीय है

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  2. इस नए ब्‍लॉग के साथ नए वर्ष में हिन्‍दी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. अच्‍छा लिखते हैं आप .. आपके और आपके परिवार वालों के लिए नववर्ष मंगलमय हो !!

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  3. बहुत बहुत धन्यवाद्..

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  4. glad to hav a friend like you....ur poems hav always been a pleasure reading....the sentiments and feelings reflected in them have been astounding...just keep on writing !!! u rockk :) hav fun

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  5. हिंदी ब्लाग लेखन के लिये स्वागत और बधाई । अन्य ब्लागों को भी पढ़ें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देने का कष्ट करें

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  6. This comment has been removed by the author.

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  7. thanks kuch ankahi ke liye
    "yeh hai meri kahani,khamosh zindagani"

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  8. touching nd very deep thots, seems like u have experienced the thing

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