हडबडा कर कुछ इस तरह से नींद उडी कि जैसे किसी तूफ़ान का आगाज़ हुआ हो.. अभी आँखे खुली ही नहीं थी कि स्मृतिपटल पर कुछ धुंधले दृश्य उभर रहे थे, जो शायद मुझे कुछ कहना चाहते थे.. जब आँख बंद कर फिर से सोचा तो मुझे वो ख्वाब दिख रहा था जो अब इतिहास बन चुका था.. खैर, आपको उन लम्हों से रूबरू कराता हूँ जब मैं आँखे मूँद कर कुछ सोचने लगा था..
"रात गुज़र गयी उन् सूरमायी आँखों में,
ख्वाब देखे हसीन उन बचीखुची यादों में..
होश में थे या थे बेहोश, बस बेखबर से थे,
जाने कैसे जग रहे थे सुन्न पड़ी धडकनों में..
जिस्म ना मिले तो क्या, वो रूहानी मिलन थे,
बिना छुए भी उनका स्पर्श है मेरी चाहतों में..
काज़ल से तर पलकें तड़प रही थी अंधेरों में,
जुगनू चिराग जला रहे थे हमारी तन्हा राहों में..
फुलवारी की महक से ज्यादा मदहोश थी वो,
बनवारी की बंसी सा नशा था उन खुशबुओं में...!!"
बस इतने में मुझे उस alarm की आवाज़ ने फिर से उठने को मजबूर कर दिया.. और वो चौथे पहर के स्वप्ना को फिर से याद करने की कोशिश में लग गया...!!!
sahi bhai
ReplyDeletebilkul aisa hi kayi baar hua hai
sapne bhi kahan kahan leke chale jaten hai
heart touching lines :)
Kanu.. Bahut achha likhte hai aap..
ReplyDeleteaapki poem me mera naam bhi aaya hai :)
itni khubsoorati se ye word use kiya hai..
infinite like.. :D
i guess sirf naam hi nahi aaya hai.. it has been written for you .. ;)
ReplyDeleteBahut hi achha likha hai :)
ReplyDeleteCarrying on what Vipul mentioned,
Note the use of "स्वप्ना" instead of "स्वप्न" ;)
mast intro hai :)
ReplyDeletespnaa achchaa he spne dekhnaa achchi bat he lekin bure spnon ko bhul jaana achche spnon ko saakar krne ki tmnna to dil men rkhnaa hi pdhegi. akhtar khan akela kota rajsthan
ReplyDeletenice yaarr :):):)
ReplyDeletePoems are sometime so beautiful that you r short of words to write a comment on them....bole to "BHAVNA ko samjho,SABDO me mat jaaoo"
ReplyDeletethnx a lot to all..
ReplyDelete@ayush nd vip.. feeling par jao, faaltu baato par nahi. :P
बहुत उम्दा!
ReplyDeleteबहुत उम्दा
ReplyDeletebeautiful poem. I appreciate !
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