Tuesday, September 7, 2010

Dedicated to Dear Friend "Yashoj"..

मैं चाहत की आँधियों में, मोहब्बत का दिया जलाने चला था,
जो दुसरो को यूँ ही मिला, उसे रोज दुआओ में मांगने चला था..
मैंने फूलो की सेज सजा कर, आशियाने के ख्वाब संजोये थे,
जुबां को खामोश सा कर, मैं आँखों से ही सब कहने चला था..
खुशनुमा थे वो ज़माने, जब नींदे भी पूछ कर आती थी,
तुमसे मिलने की आहट में, खुशबुओं में भीगने चला था..
कई सुर्ख गुलाब सूख गए, मेरी ज़िन्दगी की किताब में पड़े-पड़े,
तेरी यादों की मशालों से, उन्हें फिर से मैं महकाने चला था..
मैं थक गया तुझे याद करते करते, पर कभी रुक ना पाया था,
तुझसे इज़हार कर, अश्व के वेग सा मैं यशोज बन ने चला था...!!

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